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जिंदगी एक सफ़र

जयपुर, अपने आप में ही सारी दुनिया को समाने का मद्दा रखता है ये शहर| जयपुर कोई नया नहीं है मेरे लिए और न ही मैं नया हूँ इस शहर के लिए| आप जब अपने बनने की प्रक्रिया में होते है तो ऐसी कई बातें होती हैं जिसकी वजह से आज आप ‘आप’ बने हैं , और मैं आज जो कुछ भी हूँ, इस शहर की भी एक भूमिका है इसमें| मैं जब राजस्थान आया तो बहुत ही बेचारा सा था, दुनिया की बातों से अनजान था, मेरा गलती से सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ राजस्थान में सिलेक्शन हुआ और मैं बिना कुछ सोचे समझे अपना झोला उठा कर यहाँ आ गया| आ तो गया था पर जब देखा की दुनिया की रेस में बहुत पीछे खड़ा हूँ तो समझ नहीं पा रहा था की कैसे खुद को इस काबिल बनाऊ के बस पीछे ही न रह जाऊं| मैंने अपने लाइफ का पहला dslr कैमरा भी यहीं देखा था, राम का था| मैं देख कर हैरान हो गया ये कैसा कैमरा है| पहली ppt प्रेजेंटेशन मैंने यहीं आकर दी थी और यकीन मानिए, बहुत ही वाहियात थी, तब तो लैपटॉप भी नहीं हुआ करता था मेरे पास|   कुछ ऐसे लोगों से मिला यहाँ बहुत बेहतरीन थे| खैर, आपको अपनी बातों से बोर नहीं करूँगा, अगर आपने मेरी विडियो देखी है instagram पर तो आप जानते हो...

किस्सा कहानियों का: पहली कड़ी।

कहानियाँ जिंदगी का अटूट हिस्सा होती हैं। कहानियों में ही हम और आप खुद को ढूंढते है। बचपन से ही हम कहानियों के शौकीन रहे है। मुझे भी हमेशा से ही कहानियों ने अपनी तरफ आकर्षित किया है। काफी दिनों से मैं एक कहानी पर काम कर रहा था। अब जाकर मेरी कहानी हो आकार मिला है। ये कहानी है विकास और नेहा की। विकास झल्ला है और नेहा शांत। कहानी कई हिस्सों में आगे बढ़ती है। कहानी का पहला हिस्सा आपके सामने है। अगला हिस्सा कुछ दिनों में आपसे सांझा करूंगा। पहली कड़ी ट्रेन धीरे धीरे अपनी गति कम कर रही थी। 3 दिन से भाग दौड़ से इतना थक गया था विकास की सोने का वक़्त ही नहीं मिला। थके भी क्यों न , 3 दिन में 5 शहर जाकर आना मामूली बात थोड़े न है। अपनी जिंदगी में इतना उलझ चुका था की अब इसी को नियति भी मान बैठा था। सोचता की जो हो रहा होने दो , देखते है कब तक होता है। दिल्ली आने वाली थी और उसे भी यही उतरना था पर इतनी गहरी नींद में सोया था की आज तो किसी और स्टेशन पर ही उतरेगा। भाई साब , ओ भाई साब , दिल्ली आ गयी , यही उतरना है न आपको। एक आदमी विकास को उठाने की कोशिश कर रहा था। रात को नीचे वाले को बोल कर सो...

Treks in India|| Indrahaar Pass|| Metro Peak|| Himachal Pradesh

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चलिये अब कश्मीर हमारा हुआ।

शाम ढलने को थी। वक़्त करीबन करीबन 6:30 बजे का होगा। ऑफिस से निकलकर मैं बाइक से अपने घर जा रहा था। बारिश का मौसम है और जब निकल रहा था तो हल्की बूँदा बाँदी हो रही थी पर बीच रास्ते आते आते बारिश की उन हल्की बूंदों ने जबर्दस्त रूप ले लिया था। देखा की रोड की साइड में एक चचा ने चाय की टपरी खोल रखी है और बारिश ने उनकी टपरी पर 8-10 लोग भेज रखे है। मैंने बाइक साइड में की और उनमे शामिल हो गया। चचा ने चाय के साथ वडा पाव का भी डेरा वही जमा रखा था। दिल खुश हो गया था। मैंने एक हाथ में वडा पाव और दूजे में चाय का कप लिया , वही कहीं साइड में बैठ गया। अब आप बोलेंगे , फालतू फोकट का टाइम वेस्ट कर रहा , मेरे टाइटल में और ऊपर के सीन में जमीन आसमान का फर्क है। लेकिन हुज़ूर , थोड़ा माहौल तो बनाना ही पड़ता है , थोड़ी भूमिका भी बनानी पड़ती है। आज का तो ट्रेंड ही यही है। वैसे मेरे इस ब्लॉग में माहौल जरूरी भी है क्योंकि अब मैं जो कुछ भी लिखुंगा , हो सकता है वो पढ़ते पढ़ते आप मुझे एंटि गवर्नमेंट या एंटि नेशनल का तमगा भी दे दे। आप ये भी बोल सकते है की पाकिस्तान क्यों नहीं चला जाता। आप बोल सकते है सेना मुझे गोल...

Nationalism on Social media: The Side Effects...!

मैं आजकल जहाँ भी जाता हूँ , भारत-पाकिस्तान की बातें ही हो रही होती है। जितने भी लोग हो , सब अपनी रणनीति बनाने में लगे रहते है। ऐसा कर देंगे तो वैसा हो जाएगा , भारत को अब पाकिस्तान के ऊपर परमाणु बम गिरा ही देना चाहिए , लाहौर पर कब्जा कर लेते है , वगैराह- वगैराह। मैं मानता हूँ की देशभक्ति कूट कूट कर भरी है , मैं मानता हूँ की सब बदला लेना चाहते है , मैं ये भी मानता हूँ की आज हम जिस नए भारत की बात कर रहे है , उसकी नीव सोशल मीडिया पर ही रखी गयी है। मैं नहीं समझ पा रहा था की आखिर क्या बोलू , क्योंकि इस गरम माहौल में लॉजिकल (मेरे लिए लॉजिकल , हो सकता है आपके लिए बेतुकी हो) बातें करना मुझे पिटवा भी सकता है। देखिये न , मैं ट्रैवल पर लिखने वाला बंदा आज आपसे राजनीति , देश , आर्मी और युद्ध की बातें करने जा रहा। वैसे मेरा कोई अनुभव नहीं है इन चीजों में तो अगर आपको सही न लगे तो अपनी राय आप मुझसे सांझा कर सकते है। मैं मीडिया और कम्युनिकेशन का स्कॉलर होने के साथ साथ इसका प्राध्यापक भी हूँ। तो मैं आपको अपनी बात उसी तरीके से समझाने की कोशिश करूंगा। हम आज जिस दौर में जी रहे वो सोशल मी...

Escaping to Calmness: Way to Haridwar and Rishikesh

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आमतौर पर मैं English में लिखना पसंद करता हूँ , पर पिछले ब्लॉग में एक सज्जन ने कहा था जरा हिन्दी में भी लिखा करे , तो बस आज सोचा क्यों न हिन्दी में लिख कर उन्हे खुश किया जाये। अब आपको पढ़ने वाले खुश रहेंगे तो इस में आपकी भलाई भी तो है। वैसे इस बार फिर बात वही अटक गयी थी की क्या लिखा जाये। कुछ दिन पहले हरिद्वार-ऋषिकेश जाने का मौका मिला था तो चलिये वहीं की बात सुनाता हूँ।   हरिद्वार और ऋषिकेश कोई बहुत दूर नहीं बसे हैं , ना ही वहाँ तक पहुँचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। अगर आप दिल्ली या उसके आस पास के है तो मामला और भी आसान हो जाता है। कुछ दिन पहले एक साथ 4-5 छुट्टियाँ आई थी ... बस फिर क्या था , निकल लिए हम भी अपना बैग और कैमरा उठा कर। ट्रेन की टिकट पहले ही करवा रखा था पर कमबख्त भारतीय रेल कभी टाइम पर आई है क्या। पीटीए चला मेरी ट्रेन 7 घंटे की देरी से चल रही , फिर क्या क्या था... सामने दूसरी ट्रेन खड़ी थी , उसके टीटी से बात की और चढ़ गया। ट्रेन देर रात 2:30 बजे हरिद्वार पहुँचने वाली थी तो सोना तो वैसे भी नहीं था मुझे , पहले भी कई बार सोते सोते किसी और स्टेशन पहुँच चुका हू...