Monday, February 3, 2020

जिंदगी एक सफ़र


जयपुर, अपने आप में ही सारी दुनिया को समाने का मद्दा रखता है ये शहर| जयपुर कोई नया नहीं है मेरे लिए और न ही मैं नया हूँ इस शहर के लिए| आप जब अपने बनने की प्रक्रिया में होते है तो ऐसी कई बातें होती हैं जिसकी वजह से आज आप ‘आप’ बने हैं, और मैं आज जो कुछ भी हूँ, इस शहर की भी एक भूमिका है इसमें| मैं जब राजस्थान आया तो बहुत ही बेचारा सा था, दुनिया की बातों से अनजान था, मेरा गलती से सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ राजस्थान में सिलेक्शन हुआ और मैं बिना कुछ सोचे समझे अपना झोला उठा कर यहाँ आ गया| आ तो गया था पर जब देखा की दुनिया की रेस में बहुत पीछे खड़ा हूँ तो समझ नहीं पा रहा था की कैसे खुद को इस काबिल बनाऊ के बस पीछे ही न रह जाऊं| मैंने अपने लाइफ का पहला dslr कैमरा भी यहीं देखा था, राम का था| मैं देख कर हैरान हो गया ये कैसा कैमरा है| पहली ppt प्रेजेंटेशन मैंने यहीं आकर दी थी और यकीन मानिए, बहुत ही वाहियात थी, तब तो लैपटॉप भी नहीं हुआ करता था मेरे पास|  कुछ ऐसे लोगों से मिला यहाँ बहुत बेहतरीन थे|

खैर, आपको अपनी बातों से बोर नहीं करूँगा, अगर आपने मेरी विडियो देखी है instagram पर तो आप जानते होंगे की फिलहाल मैं एक नये सफ़र में हूँ| मेरी PhD का कुछ काम था  तो मैंने 2-3 महीनों के लिए छुट्टी ले ली और जयपुर आ गया| जयपुर में वैसे कोई रहने की दिक्कत नहीं थी, बहुत से दोस्त यार हैं यहाँ लेकिन मैंने सोचा एक ऎसी जगह को बसेरा बनाया जाए जहाँ खुद से एक बार फिर से मुलाक़ात कर पाऊं| पिछला साल कुछ अच्छा नहीं गया था मेरा, बहुत से ऐसे लोग चले गये जिनके जाने की उम्मीद नहीं थी| मैंने यहाँ Moustache नाम के ट्रेवल हॉस्टल में बात की, बोला की आपके लिए बहुत काम का बन्दा हूँ मैं, रख लो कुछ महीनों के लिए और बस रहने की जगह दे दो| बस फिर क्या था, थोड़ी बहुत बातें हुई और मुझे यहाँ रहने की जगह मिल गयी, वो भी बिलकुल मुफ्त में, टैलेंट हैं अपना, क्या कहें|

मैंने पिछले कई सालों में जब भी ट्रेवल किया , ट्रेवल हॉस्टल में ही रहा| मैं अक्सर बोलता आया हूँ की जब आप एक अनजान सफ़र पर होते हैं तो सबसे ज्यादा सम्भावना होती है की आप खुद को ढून्ढ ले, शहर की भेडचाल में हम अपने को कब खो देते हैं पता ही नहीं चलता और फिर देखते ही देखते बस हम सबसे ज्यादा खुद को ही मिस करने करने लगते हैं| मेरा पहले दिन हॉस्टल में बहुत ही बढिया था| अलग अलग देशों के लोगों से मिलना, उनकी संस्कृति को समझना, उनसे बहस करना, उनके साथ दोस्ती करना और फिर साथ बैठ कर दारु पीना, अलग ही एहसास देता है| मेरे हॉस्टल में अर्जेंटीना का एक कपल ठहरा हुआ है, जब बात हुई तो पता चला की पैसों की बातों में वहां की हालत हमारे भारत जैसी ही है| मैंने उन्हें अपनी दोनों बहनों की शादी की फोटो और विडियो दिखाई, उन्हें काफी अच्छा लगा| वो ये जानकर हैरान थे की कैसे हमारे यहाँ एक लड़का और एक लड़की बिना एक दुसरे को जाने घरवालों की मर्ज़ी से शादी कर लेते हैं| कैसे एक पूरा परिवार (वैसे परिवार क्या ही बोलूं, भारत के बड़े परिवालों को तो पूरा का पूरा मोहल्ला ही घोषित कर देना चाहिए) शादी में जी जान लगा देता है| हम कैसे पूजा पाठ करते है और कैसे कसते क नाम पर लोगो को निचा दिखाते हैं| वैसी ही बातें उन्होंने मुझे अर्जेंटीना की बारे में बताई| जैसे हमारे यहाँ क्रिकेट को धर्म  की तरह माना जाता है, वैसे ही अर्जेंटीना में फुटबॉल को धर्म का दर्जा दे दिया गया है|

दूसरी कहानी है एक जापानी दिखने वाले ऑस्ट्रियन बंदे की| मैं अपने रूम में घुसा और वो मेरे पास आया, और बातें करने लगा, बातों बातों में ही मैंने उससे पुछा की कहाँ से हो, उसने बोला तुम्हे क्या लगता है मैं कहाँ से होऊंगा? मैंने बोला कह नहीं सकता और फिर उसने बताया की वो ऑस्ट्रेलिया से है| उसने बोला के अक्सर लोग ये समझ लेते है की या तो वो चाइना से होगा या जापान से आया होगा| उसे जयपुर देखना था तो मैंने बोला चल मेरे साथ, मैं दिखाता हूँ जयपुर| हम अगले दिन सुबह सुबह निकले| सबसे पहले नाहरगढ़ किले पर गये| लगभग 300 पुराने इस किले की बात ही कुछ और है, सारा जयपुर दिखता है यहाँ से| मैं जब जयपुर में था तो मेरी सबसे पसंदीदा जगहों में से एक था ये किला| ढलती हुई सांझ को अगर सुकून से निहारना हो तो आप यहाँ आ सकते हैं| पुरे दिन मैंने और रेशे ने जयपुर की गलियों की छान मारते हुए निकाल दी| थक कर वापस हॉस्टल आये और सो गये| ये जो होटल है moustache, यकीन मानिए, बड़ा ही मस्त हॉस्टल है, यहाँ की हवा में ही कुछ बात है| यहाँ इस बात का एहसास तक नहीं होता की कोई आपको जज करेगा| आप जैसे हैं, और जैसे रहना चाहते हैं, वैसे रहिये|

चलिए आज के लिए इतना ही काफी है, अगली कहानी किसी और दिन किसी और कड़ी के साथ|

Monday, September 2, 2019

किस्सा कहानियों का: पहली कड़ी।


कहानियाँ जिंदगी का अटूट हिस्सा होती हैं। कहानियों में ही हम और आप खुद को ढूंढते है। बचपन से ही हम कहानियों के शौकीन रहे है। मुझे भी हमेशा से ही कहानियों ने अपनी तरफ आकर्षित किया है। काफी दिनों से मैं एक कहानी पर काम कर रहा था। अब जाकर मेरी कहानी हो आकार मिला है। ये कहानी है विकास और नेहा की। विकास झल्ला है और नेहा शांत। कहानी कई हिस्सों में आगे बढ़ती है। कहानी का पहला हिस्सा आपके सामने है। अगला हिस्सा कुछ दिनों में आपसे सांझा करूंगा।

पहली कड़ी

ट्रेन धीरे धीरे अपनी गति कम कर रही थी। 3 दिन से भाग दौड़ से इतना थक गया था विकास की सोने का वक़्त ही नहीं मिला। थके भी क्यों न, 3 दिन में 5 शहर जाकर आना मामूली बात थोड़े न है। अपनी जिंदगी में इतना उलझ चुका था की अब इसी को नियति भी मान बैठा था। सोचता की जो हो रहा होने दो, देखते है कब तक होता है। दिल्ली आने वाली थी और उसे भी यही उतरना था पर इतनी गहरी नींद में सोया था की आज तो किसी और स्टेशन पर ही उतरेगा।

भाई साब, ओ भाई साब, दिल्ली आ गयी, यही उतरना है न आपको। एक आदमी विकास को उठाने की कोशिश कर रहा था। रात को नीचे वाले को बोल कर सोया था की भईया दिल्ली आए तो प्लीज उठा देना। अरे उठो भाई दिल्ली आ गया।

, हाँ-हाँ,  आ गया दिल्ली, इतनी जल्दी क्यों आ गया। विकास नींद में बोला। फिर अपनी पूरी ताकत लगा कर उठ कर बैठ गया। नींद में ही जूता पहना, फिर धीरे से अपना बैग कंधे पर डाल कर नीचे उतर गया। घड़ी में वक़्त देखा तो सुबह के 3:15 बज रहे थे। उसकी फ्लाइट रात की थी, दिन भर के लिए उसने होटल बुक कर रखा था। वैसे घर है उसका दिल्ली में, लेकिन वहाँ नहीं जाना चाहता था। एक दिन पहले एक दोस्त को फोन किया था पर वो दिल्ली में नहीं था तो विकास ने होटल में कमरा लेना ही ठीक समझा। अब कौन घर जाये, फालतू के इतने सवाल होंगे। उसे होटल में चेक इन 8 बजे करना था तो तब तक क्या करता, इतनी सुबह कहीं और जा भी नहीं सकता था तो वही एक बेंच पर बैठ गया। नींद में ही बेंच पर बैठकर पॉकेट से फोन निकाला और एक मैसेज टाइप करने लगा, I reached Delhi, मैसेज टाइप करके भेजने ही वाला था की अचानक से ठिठक गया।

अरे, ये क्या कर रहा था मैं, नेहा को मैसेज कर रहा था। खुद से बोल कर सोचने लगा। नेहा का ख्याल आते उसकी नींद पूरी तरह खुल चुकी थी। 6 महीने पहले तक नेहा और विकास साथ थे। 6 महीने पहले तक विकास नेहा के लिए सब कुछ था। 6 महीने पहले तक विकास को नेहा पर इतना ज्यादा यकीन था की चाहे कुछ भी हो जाये वो उसे कभी नहीं छोड़ेगी। लेकिन फिर चीज़ें ऐसे बिगड़ी की आज विकास और नेहा के बीच दूरियाँ इतनी आ चुकी है की शायद अब एक दूसरे को देखना भी पसंद नहीं करेंगे। हालात ये हो चुके थे की विकास ने नेहा को अपने बर्थड़े वाले दिन मैसेज कर दिया की मरते दम तक अब वो उसका चेहरा नहीं देखना चाहता। 6 सालों में पहली बार ऐसा हुआ था जब नेहा ने विकास से उसके जन्मदिन के दिन बात नहीं की। और फिर उसके बाद जो थोड़ी बहुत व्हाट्स अप्प पर बातें होती थी, वो भी बंद हो गयी।

6 साल पहले नेहा और विकास पहली बार कॉलेज में मिले थे। विकास एक छोटे से शहर से निकल कर पहली बार कॉलेज में गया था। वहाँ की दुनिया उसके लिए बहुत नयी थी, लोग बहुत नए थे। विकास ने बहुत जल्द खुद को नए माहौल में ढाल लिया था। विकास और नेहा दोनों ही अलग अलग डिपार्टमेंट से थे। नेहा ने पहली बार विकास को कॉलेज एक म्यूजिकल प्रोग्राम में देखा था। तब उसे पता नहीं था की विकास नेहा की क्लास में पढ़ने वाले एक लड़के, अमित, का रूममेट है। विकास की कभी भी अपने क्लास वालों से नहीं बनी इसलिए वो हमेशा दूसरे डिपार्टमेंट वालो के साथ रहता था। विकास ने नेहा को पहली बार तब देखा और जाना था जब अमित ने बोला की उसकी क्लास की एक लड़की घर से आई है और साथ में बहुत सारा खाना भी लायी है। विकास को सिर्फ खाने से मतलब था तो वो अमित के साथ उस लड़की के पास चला गया और बेशर्मों की तरह उस लड़की के खाने के सामान में अपनी मतलब की चीज़ें देखने लगा। पहली बार उसे नेहा का नाम भी वही पता चला था। उस वक़्त उन दोनों को ही नहीं पता था की इतने साल साथ बिता देंगे एक साथ। उस दिन के बाद से विकास नेहा को जब भी देखता, उसे अजीब-अजीब नाम से बुला कर चिढ़ाता।
एक दिन नेहा ने उससे पुछ ही लिया:

तुम मुझे अजीब अजीब नामों से क्यों बुलाते हो? नाम नहीं पता क्या तुम्हें मेरा?
पता है ना, पर ऐसे ही बुला लेता हूँ, क्या फर्क पड़ता है? नाम ही तो है। विकास इतना कह कर हँसता हुआ चला गया।

विकास झल्ला था। चीज़ें समझ नहीं आती थी उसे। सब से एक ही जैसे बातें करता था। कुछ ही दिनों में विकास और अमित को पूरा कॉलेज जानने लगा था। धीरे धीरे विकास और नेहा की दोस्ती भी हो गयी और फिर ये दोस्ती से बेस्ट फ़्रेंड्स में कब बदल गयी पता भी नहीं चला। विकास के लिए सब एक जैसे ही होते थे। शायद नेहा भी। वो सब से ऐसे ही मिलता जैसे नेहा से। नेहा के लिए विकास धीरे धीरे बेस्ट फ़्रेंड् वाले जोन से निकल कर खास होने लगा था पर ये बात भी विकास को समझ नहीं आ रही थी। विकास तो अपनी धुन में ही मस्त था।

विकास और अमित ने अपना एक पूरा परिवार बना रखा था कॉलेज में ही। उस परिवार में भाई थे, बहनें थीं। कॉलेज शुरू हुये 6 महीने हो चुके थे और इतने ही महीने हो चुके थे विकास और नेहा को मिले हुये भी।

कॉलेज के 1.5 साल अभी बाकी थे और कॉलेज के बाहर 4 साल और काटने वाले थे दोनों साथ। कहानी बहुत हिस्सों में खुद को लेकर जाती है। अभी बहुत किरदारों का जुड़ना बाकी है। इंतज़ार कीजिये अगली कड़ी के आने का।


Thursday, August 8, 2019

चलिये अब कश्मीर हमारा हुआ।


शाम ढलने को थी। वक़्त करीबन करीबन 6:30 बजे का होगा। ऑफिस से निकलकर मैं बाइक से अपने घर जा रहा था। बारिश का मौसम है और जब निकल रहा था तो हल्की बूँदा बाँदी हो रही थी पर बीच रास्ते आते आते बारिश की उन हल्की बूंदों ने जबर्दस्त रूप ले लिया था। देखा की रोड की साइड में एक चचा ने चाय की टपरी खोल रखी है और बारिश ने उनकी टपरी पर 8-10 लोग भेज रखे है। मैंने बाइक साइड में की और उनमे शामिल हो गया। चचा ने चाय के साथ वडा पाव का भी डेरा वही जमा रखा था। दिल खुश हो गया था। मैंने एक हाथ में वडा पाव और दूजे में चाय का कप लिया, वही कहीं साइड में बैठ गया।

अब आप बोलेंगे, फालतू फोकट का टाइम वेस्ट कर रहा, मेरे टाइटल में और ऊपर के सीन में जमीन आसमान का फर्क है। लेकिन हुज़ूर, थोड़ा माहौल तो बनाना ही पड़ता है, थोड़ी भूमिका भी बनानी पड़ती है। आज का तो ट्रेंड ही यही है। वैसे मेरे इस ब्लॉग में माहौल जरूरी भी है क्योंकि अब मैं जो कुछ भी लिखुंगा, हो सकता है वो पढ़ते पढ़ते आप मुझे एंटि गवर्नमेंट या एंटि नेशनल का तमगा भी दे दे। आप ये भी बोल सकते है की पाकिस्तान क्यों नहीं चला जाता। आप बोल सकते है सेना मुझे गोली क्यों नहीं मार देती। ऊपर से खूब सारी गालियां मिलेंगी वो अलग। खैर, कोई बात नहीं, अब आदत हो गयी है मुझे भी ये सब सुनने की।
हाँ तो मैं कहाँ था? चाय की टपरी पर वडा पाव और चाय क साथ ज़िंदगी का आनंद ले रहा था। तभी किसी ने अहंकार और गर्व से मिश्रित शब्दों में बोला,

हाहाहाहा, चलिये अब कश्मीर हमारा हुआ। और फिर उन भाई साब के हंसी के ठहाकों में वहाँ उनके साथ बैठे बाकी के लोग भी शामिल हो गए। चाय के प्याले को सबने हाथ में ऐसे पकड़ रखा था जैसे विहस्की के साथ जश्न मना रहे हो। अब मेरा ध्यान अपने वडा पाव और चाय से हट कर वहाँ मेरे बगल में बैठे 7-8 लोगों की बातों पर था। वो सब बैठ कर धारा 370, 35a और मोदी जी के बारे में बात कर रहे थे। जिस तरीके से बात कर रहे थे ऐसा लग रहा था अमित शाह जी ने पहले इनकी सलाह ली होगी और फिर सदन में इनकी तरफ से बोला होगा। मैं ये जानने को बहुत उतावला था की आखिर ये लोग कितना जानते है कश्मीर के बारे में, कितना जानते इस धारा के बारे में, और कितना जानते है आतंकवाद के बारे में। आतंकवाद अपने आप में बहुत बड़ा मुद्दा है, धारा 370 हटाओ और आतंकवाद मिटाओ। ये तो सुना ही होगा आपने। आजकल फ़ेसबूक और व्हाट्स अप पर बहुत फ़ेमस है ये कोट। मैं धीरे से उठ कर अपना वडा पाव और चाय लेकर उनकी तरफ जाकर बैठ गया।

अब आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा, एक दूसरे सज्जन ने बोला। सबने अपनी हामी भरी और साथ में मैंने भी हाँ में हाँ मिला दिया। अब उतने लोगो के बीच में अगर सरकार के खिलाफ कुछ भी बोलता तो भाइया एंटि नेशनल के तमगे के साथ चाटे, लात, घूसों की बरसात हो चुकी होती और संभावना ये भी हो सकती थी की चाय का कप चुराने के इल्ज़ाम में मेरी ल्यंचिंग हो जाती। अगर आप अलग धारा के हैं तो आप अपनी भावना को फ़ेसबूक पर लिख सकते हैं। भरे बाज़ार अगर कुछ खिलाफ में बोल दिया तो जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। 

उस चाय की टपरी पर आतंकवाद, कश्मीर, वहाँ की जमीन और उनके रेट, यहाँ तक की कश्मीरी सेब के बागान पर भी खूब बातें हुई। बातें हुई की अब हम कश्मीर को अपने पैरो तलें रौंद सकते है। उस नेता जी की बात भी हुई जिसने कहा था की अब कश्मीर जाकर गोरी लड़कियों से शादी कर सकते है। खूब बातें हुई। नतीजा कुछ नहीं निकला। मुझे ये पता ही नहीं चल पाया की उनमे से कौन कश्मीर में सेब के बागान खरीद रहा, कौन जमीन खरीद कर प्लॉट बना रहा, कौन जाकर वहाँ की गोरी लड़कियों के साथ शादी करेगा। लेकिन जनाब, आप हिन्दू हैं और वहाँ की लड़कियां मुस्लिम, कैसे करेंगे? कहीं घर वाले आपको लात मार कर बाहर ना निकाल दे। खैर, ये आपके और आपके घर वालों के बीच की बातें हैं, मैं भला कौन होता हूँ इसपर कुछ बोलने वाला।

अब आते है मुद्दे पर, कश्मीर, आतंकवाद, धारा 370। सारा देश आज जश्न के माहौल में हैं। जो लोग कल तक किसी भी धारा को नहीं जानते थे, आज उसके प्रखण्ड विद्वान बन चुके है। लेकिन इस बीच में सब ये भूल रहे, की कल ही दिल्ली में एक स्टूडेंट का रेप हुआ। क्या पता रेपिस्ट भी जश्न मनाने के लिए अति उतावला हो। मुझे ये देखना है की कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद हम कैसे अपने देश से रेप को ख़त्म करते है। मुझे ये देखना है की कैसे धारा 370 हटाने के बाद हम देश में रोजगार लेकर आते है। मुझे ये भी देखना है कैसे हम देश में ये उग्र राष्ट्रवाद का माहौल ख़त्म करते है। कश्मीर की तरह असम, मणिपुर, अरुणाचल में भी ऐसी धाराए हैं, उनको कैसे ख़त्म करते हैं। अब आप बोलेंगे, कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ कश्मीरी उसकी सजा भुगत रहे। मैं बोलूँगा एक बार कश्मीर को मीडिया की नज़रों से नहीं, अब अपनी नज़रों से देखिये। आप देखिये की आज भी घाटी में कश्मीरी पंडित रहते हैं। आप ये भी देखिये की कश्मीरी पंडितों के साथ साथ बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और कई जगह के लोग भी रहते हैं। मैंने कश्मीरी पंडित को एक कश्मीरी मुसलमान से शादी करते भी देखा है और अच्छे से साथ रहते भी देखा है। आप भी देखने की कोशिश कीजिये। अच्छा लगेगा।

आप फ़ेसबूक पर बैठ के प्लॉट, कश्मीरी लड़कियों और कश्मीर के बारे में मीम बना सकते है पर याद रखिएगा, हमारे मीडिया में एक थियरि है, Magic Bullet Theory, इसमे ये कहा गया है की एक ही चीज़ को बार बार देखने से आप उसी पर यकीन कर लेते है। UNESCO ने देश की प्रगति को मापने के लिए ये कहा थे की हर 1000 लोगो पर कम से कम 50 सेट टेलिविजन होने चाहिए, 100 अखबार होने चाहिए। अब मैं देश की प्रगति नहीं बल्कि एक अलग ही माहौल देखता हूँ। मीडिया कैसे चीख चीख कर एक माहौल बनाने की कोशिश कर रहा जरा समझिए इस बात को। राष्ट्रवाद एक भावना है, इसे अपने ऊपर हावी ने होने दे। धर्म आशा देता है, इसे भी अपने ऊपर हावी ना होने दे। कब तक ऐसे ही हिन्दू मुस्लिम के बहस में पड़े रहेंगे?

राष्ट्रवाद था इसलिए हम आजाद हुये थे, 1947 से 2014 तक बहुत लंबा सफर तय किया है हमने। ये आज जो भी है हमारे पास ऐसा नहीं है 2014 के पहले नहीं था। लेकिन 2014 के बाद एक नए युग की शुरुवात हुई। ऐसा यकीन दिलाया गया की जो है अब है, पहले कुछ नहीं था। जरा सोचिए और समझने की कोशिश कीजिये, हमारा मुकाम सिर्फ धर्म तक सीमित नहीं, बहुत आगे जाना है। 370 हटाना सही है ये गलत मुझे नहीं पता न ही मैं प्रखण्ड विद्वान हूँ इस मामले में। लेकिन इसके बाद से जो बाढ़ आई है मुझे उसका डर है। कश्मीर खूबसूरत है, खूबसूरत ही रहने दे और डरे की कहीं कश्मीर फिलिस्तीन न बन जाये। अगर कश्मीर को कश्मीर ही रहने देना है तो इसमे मेरा, आपका और हम जैसों का योगदान बहुत जरूरी है। 

धारा 370 के बाद वहाँ सब फिर से सही करने की जितनी ज़िम्मेदारी सरकार पर है, उससे कहीं ज्यादा आप पर है। आराम से सोचियेगा।

Wednesday, February 27, 2019

Nationalism on Social media: The Side Effects...!


मैं आजकल जहाँ भी जाता हूँ, भारत-पाकिस्तान की बातें ही हो रही होती है। जितने भी लोग हो, सब अपनी रणनीति बनाने में लगे रहते है। ऐसा कर देंगे तो वैसा हो जाएगा, भारत को अब पाकिस्तान के ऊपर परमाणु बम गिरा ही देना चाहिए, लाहौर पर कब्जा कर लेते है, वगैराह- वगैराह। मैं मानता हूँ की देशभक्ति कूट कूट कर भरी है, मैं मानता हूँ की सब बदला लेना चाहते है, मैं ये भी मानता हूँ की आज हम जिस नए भारत की बात कर रहे है, उसकी नीव सोशल मीडिया पर ही रखी गयी है। मैं नहीं समझ पा रहा था की आखिर क्या बोलू, क्योंकि इस गरम माहौल में लॉजिकल (मेरे लिए लॉजिकल, हो सकता है आपके लिए बेतुकी हो) बातें करना मुझे पिटवा भी सकता है। देखिये न, मैं ट्रैवल पर लिखने वाला बंदा आज आपसे राजनीति, देश, आर्मी और युद्ध की बातें करने जा रहा। वैसे मेरा कोई अनुभव नहीं है इन चीजों में तो अगर आपको सही न लगे तो अपनी राय आप मुझसे सांझा कर सकते है।

मैं मीडिया और कम्युनिकेशन का स्कॉलर होने के साथ साथ इसका प्राध्यापक भी हूँ। तो मैं आपको अपनी बात उसी तरीके से समझाने की कोशिश करूंगा। हम आज जिस दौर में जी रहे वो सोशल मीडिया का है और इसकी एक अलग पर बहुत विशाल दुनिया है। पिछले 7 साल में जिस तरीके से सोशल मीडिया ने अपना साम्राज्य स्थापित किया है वह देखने वाली बात है। हमारे लैपटाप से निकल कर अब इसका ठिकाना हमारा मोबाइल हो चला है। फुलवामा में हुये आतंकवादी हमले और उसमे शहीद हुये जवानों की खबर प्रकाश की गति से लोगो के मोबाइल स्क्रीन पर पहुंची और उससे भी ज्यादा तेजी लोगो ने उन खबरों को एक दूसरे को फॉरवर्ड करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते आक्रोश की एक सुनामी दौड़ गयी देश में। न्यूज़ चैनल्स को अपना मसाला मिल चुका था और फिर  मीडिया ट्रायल का दौर शुरू हो गया। देशभक्ति की बातें सोशल मीडिया पर हैशटैग के साथ सफर करने लगी और भी उन पोस्ट पर लोगो के गुस्से वाले एमोजिस भी आने लगे। देखिये एक बात समझ लीजिये, किसी चाय की टपरी या ऑफिस की कुर्सी पर बैठ कर बोलना बहुत आसान है की अब तो युद्ध हो ही जाने दो, पर जरा उनसे भी तो पुछ के देखिये जिन्हे वाकई वहाँ बार्डर पर जाकर युद्ध लड़ना है। हम देशभक्ति से ओत-प्रोत होकर कोई भी मैसेज, विडियो या कंटेन्ट व्हाट्स अप्प और फ़ेसबूक पर शेयर किए किए चले जा रहे हैं। देशभक्ति की भावना लिए स्टेटस अपडेट कर रहे की इस बार हो जाने दो। अरे भाई क्या हो जाने दो, हलवा है क्या? युद्ध कोई पबजी का गेम है क्या जो मोबाइल पर ही लड़ लिया गया। हाँ ठीक है, पाकिस्तान के खिलाफ हमारा रेकॉर्ड काफी अच्छा रहा है पर इसका क्या मतलब है, लड़ ले युद्ध? कर ले अपनी आर्थिक स्थिति को पीछे? कर ले satisfy अपने nationalism वाले इमोशन को? जरा सोच के देखिये। हम युद्ध जीत भी जाये तो उसके परिणाम हमारे यहाँ भी तो लाखों परिवारों को भुगतने होंगे। हमारा क्या है,  हमें तो सिर्फ सोशल मीडिया पर युद्ध लड़ना है। कभी असली जिंदगी में किसी और के लिए लड़ा गया है क्या आपसे। सामने कुछ बुरा हो रहा हो तो आप तो निकल लेते हैं यह बोल कर की हमारा बुरा थोड़े न हो रहा। देखिये हुज़ूर, बात इतनी सी है, virtual वर्ल्ड में रहना और वहाँ चीख चीख कर यह कहना बहुत आसान है पर असलियत में मामला बहुत भयानक दिखता है।

आज सोशल मीडिया पर जीतने भी visuals आप देखते हैं, यकीन मानिए, उनमे से अधिकतर से छेड़छाड़ की गयी होती है। यह मैं नहीं कह रहा, डिजिटल क्राइम सेल की रिपोर्ट कहती है। बाकी मैंने भी कुछ रिसर्च कर रखे है सोशल मीडिया पर viral होती information। अगर आपको facts and figures की बात करनी हो तो बता दीजिएगा, मैं आपको वो सारे पपेर्स भेज दूंगा जो मैंने लिखे है और पब्लिश किए है। जिस तेज़ी से सोशल मीडिया हमारे इमोशन के साथ खिलवाड़ कर रहा है, वो दिन दूर नहीं जब हम सिर्फ और सिर्फ इसकी ही बातों पर विश्वास कर लिया करेंगे। मैं आपको ऐसे हज़ार examples दे सकता हूँ जहाँ सोशल मीडिया से फैली हुई खबरे बहुत दूर तक गयी और फिर बाद में उन खबरों को फ़ेक बता दिया गया। मीडिया में एक theory होती है जिसे magic bullet theory बोलते है। इसके मुताबिक अगर एक प्रकार की खबर को हम बार बार देखते रहेंगे तो वो खबर हमारे लिए सच हो जाती है और हम उस पर विश्वास करने लगते है। अब सोशल मीडिया के कारण magic bullet theory बहुत घातक तरीके से अपना काम कर रही है। घूम फिरकर हमारे पास एक ही तरह की खबरे आती रहती है और हम उन्ही खबरों पर विश्वास करते फिरते है। आपको नोटबंदी के दौरान 500 और 2000 के नोटों में चिप लगे होने की बात तो याद ही होगी न। जरा सोचिएगा की वो मैसेज इतनी फैली थी की न्यूज़ रूम ने भी चीख चीख कर उस खबर को सच बताया था।

आज भारत में जो युद्ध का माहौल बन रहा है, आप मानिए या न मानिए, इसमे सबसे बड़ा योगदान सोशल मीडिया का है जहाँ लोग बिना सोचे समझे चीख चीख कर देशभक्ति से ओतप्रोत होकर मैसेज फॉरवर्ड कर रहे हैं। देशभक्ति बुरी बात नहीं, ना ही इसे दिखाना गुनाह है, पर आपकी देशभक्ति को आधार बना कर कोई और गेम खेल जाएगा और आप देखते रह जाओगे। और आज सोशल मीडिया अपनी देशभक्ति दिखाने का सबसे सटीक प्लैटफ़ार्म बन चुका है।
जरा सोचिएगा, आपका एक मैसेज, विडियो क्या impact कर सकता है। भारत में media literacy बहुत ही कम है और अब सोशल मीडिया के आने के बाद visual literacy की भी जरूरत पड़ने लगी है। सोशल मीडिया पर अपने इमोशन पर थोड़ा सा कंट्रोल रखने की जरूरत है बस, बाकी सब ठीक है। ऐसी बहुत सी चीज़ें है जो मैं बोलना चाहता हूँ पर मैं ट्रैवल ब्लॉगर ही ठीक हूँ।

जय हिन्द, जय भारत।


Saturday, February 23, 2019

Escaping to Calmness: Way to Haridwar and Rishikesh


आमतौर पर मैं English में लिखना पसंद करता हूँ, पर पिछले ब्लॉग में एक सज्जन ने कहा था जरा हिन्दी में भी लिखा करे, तो बस आज सोचा क्यों न हिन्दी में लिख कर उन्हे खुश किया जाये। अब आपको पढ़ने वाले खुश रहेंगे तो इस में आपकी भलाई भी तो है। वैसे इस बार फिर बात वही अटक गयी थी की क्या लिखा जाये। कुछ दिन पहले हरिद्वार-ऋषिकेश जाने का मौका मिला था तो चलिये वहीं की बात सुनाता हूँ। हरिद्वार और ऋषिकेश कोई बहुत दूर नहीं बसे हैं, ना ही वहाँ तक पहुँचने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। अगर आप दिल्ली या उसके आस पास के है तो मामला और भी आसान हो जाता है। कुछ दिन पहले एक साथ 4-5 छुट्टियाँ आई थी... बस फिर क्या था, निकल लिए हम भी अपना बैग और कैमरा उठा कर। ट्रेन की टिकट पहले ही करवा रखा था पर कमबख्त भारतीय रेल कभी टाइम पर आई है क्या। पीटीए चला मेरी ट्रेन 7 घंटे की देरी से चल रही, फिर क्या क्या था... सामने दूसरी ट्रेन खड़ी थी, उसके टीटी से बात की और चढ़ गया। ट्रेन देर रात 2:30 बजे हरिद्वार पहुँचने वाली थी तो सोना तो वैसे भी नहीं था मुझे, पहले भी कई बार सोते सोते किसी और स्टेशन पहुँच चुका हूँ।



हरिद्वार

हरिद्वार पहुँच चुका था, स्टेशन से बाहर निकल कर रिक्शा किया और चल पड़ा हरकी पौड़ी की तरफ। ठंड बहुत थी, तेज़ हवाए और दूर से पानी की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी। सड़क के किनारे लोग आग ताप रहे थे। एक बात तो है, हरिद्वार पहुँचते ही एक गजब का एहसास होता है। दूर से ही गंगा अपने पूरे शोर के साथ बहती हुई सुनाई देती है। मैं हरकी पौड़ी के बाहर रुक गया और वही सड़क के किनारे रुक कर चाय पीने लगा। रात के 3 बज रहे होंगे पर लोग भी खड़े थे। चाय पीकर मैं हरकी पौड़ी के तरफ चल दिया। ब्रिज पर पहुँच कर देखा तो रोंगटे खड़े हो गए। लोग इतनी सुबह गंगा के ठंडे पानी में नहा रहे थे। मैं बस उन लोगो को देख रहा था, भाई सुबह के 3 बज रहे है और ये लोग इतने ठंडे पानी में नहा रहे। आखिर चलता क्या है इनके दिमाग में। खैर मुझे क्या, मैं अपना कैमरा निकाला और आगे बढ़ गया। एक अजब सा एहसास होता है वहाँ। गंगा का शोर शोर जैसा नहीं लगता, लोगो को ठंडे पानी में भी सुकून मिलता दिखता है, लोग आफ्नो की शांति के लिए वहाँ हवन करते देखे जा सकते थे। कुछ शॉट लिए मैंने फिर आगे बढ़ गया। एक बात तो है, गंगा का एक किनारा जहां शांति देता है, वहीं दूसरे किनारे पर गंदगी का अंबार लगा देखा जा सकता है। प्लास्टिक्स, अगरबत्ती के डिब्बे, कचरे...मैंने सोचा आखिर इस तरफ किसी का ध्यान क्यों नहीं जाता। यह भारत है साहब, यहाँ धर्मस्थल के बारे में कुछ बोलना खुद को मुसीबत में धकेलना जैसा हो सकता है। मैं अपने क्रांतिकारी विचारों को साइड में रख कर आगे निकल गया। देखते ही देखते 6 बज चुके थे, मेरे कैमेरे की बैटरि जवाब दे चुकी थी तो मैं हरकी पौड़ी से बाहर की तरफ आया और एक ढाबे पर जाकर बैठ गया। हरिद्वार में मेरे लिए और कुछ नहीं था, मैं ढाबे पर बैठ कर लोगो को देख रहा था। लोगो से  पता चला यहा से ऋषिकेश के लिए ऑटो मिल जाती है, करीब 7:30 बजे मैं हरिद्वार से ऋषिकेश के लिए निकल गया।

Early morning shot, Harki Paudi



My companions 

Welcome to Haridwar

clock

The cold water of Ganges 

That night 

Lights

Chaai time 

The bridge

Being wanderer

being wanderer

Ghaat

Waiting for the customer

Beliefs


ऋषिकेश

ऋषिकेश मुझे बहुत पसंद है। यहाँ की हवा और फिजा में कुछ घुला है शायद। मैं 5वी बार ऋषिकेश में था पर फिर भी हर बार कुछ नया ही लगता था। हाँ, इसके पहले जितनी बार गया था, किसी आश्रम में रुका था तो इस बार सोचा ऋषिकेश को दूसरी तरफ से देखते है। मैंने booking.com से अपने लिए हॉस्टल में एक बेड बूक किया। The Hosteller, मैंने सोचा नहीं था ये जगह मुझे एकदम ही नया एहसास देगी। हॉस्टल लक्ष्मण झूला के पास था तो वह तक पहुँचने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा। हॉस्टल पहुँच के अपने रूम में गया और सो गया। जब नींद खुली तो दिन के तीन बज चुके थे। मेरे रूम में 4 बेड थे। मेरा बेड सबसे नीचे था। मेरे सामने वाले बेड पर एक रशियन था, बाकी का पता नहीं। शाम को मैं परमार्थ निकेतन चला गया। वहाँ की आरती मिस नहीं करना चाहता था। परमार्थ निकेतन के सामने होने वाली आरती बहुत ही फ़ेमस है और बहुत से लोग आते है देखने। जब आरती शुरू हुई तो सब शांत होकर बैठ गए। मैं अक्सर कहता हूँ की अकेले घूमने का मतलब ये नहीं आप अकेले ही रहेंगे, आपको आपकी तरह के बहुत से लोग मिलेंगे। परमार्थ निकेतन के पास मुझे एक लड़का मिला, निशांत, जो की मेरी तरह ही अकेला घूमने निकला था। मैं और निशांत काफी देर तक घूमते रहे और फोटोग्राफी करते रहे, फिर बातों बातों में ही अगले दिन राफ्टिंग पर जाने की बात हो गयी। उसने बात की थी किसी से तो बस, यही फ़ाइनल हुआ की अगले दिन सुबह 7 बजे राफ्टिंग के लिये निकलेंगे। ट्रैवल हॉस्टल की बात ही कुछ और होती है। सब अपनी जिंदगी जीने आते है। हॉस्टल पहुँच कर मैं काफी लोगो से मिला। करीब करीब 18 लोग थे, 3 USA के, 2 Australia, 1 Switzerland, 3 Spain और बाकी इंडिया के। हॉस्टल में एक कॉमन रूम था जहां सब बैठ कर बात कर सकते थे। कॉमन रूम में मुझे एक बंदा मिला, शायद मुंबई का था। उसके साथ काफी बातें हुई। चुकी अगले दिन मुझे राफ्टिंग के लिए जाना था तो मैं खाना खाकर सो गया। अगले दिन मैं निशांत राफ्टिंग के लिए निकाल गया। मैं जितनी बार ऋषिकेश आया हूँ, उतनी ही बार राफ्टिंग भी किया है मैंने। I will not write about my rafting experience here, I have made a vlog on rafting...please watch that on my YouTube channel. 

Parmaarth niketan aarti

the devotee

Faith

Few from hostel

Rafting

Pooja at hostel

See the excitement

OM

Jai ho

New buddies



16 km का स्ट्रेच आपको बहुत थका देता है। अब मैं सिर्फ आराम करना चाहता था। राफ्टिंग के बाद वापस हॉस्टल जाकर सो गया। शाम को नींद खुली तो देखा किसी पूजा की तयारी चल रही थी। सबसे अच्छी बात ये थी की जीतने भी विदेश के थे वो भी बहुत खुश थे की अब कुछ नया देखने को मिलेगा। हम सभी पूजा में साथ ही बैठे थे। पूजा के बाद हम सब जाकर कॉमन रूम में बैठ गए। रात के करीब 10 बज रहे होंगे, कॉमन रूम में बैठे एक बंदे ने कहा चल यार कुछ तूफानी करते है। अबे रात के 10 बज रहे है और ठंड भी है, क्या तूफानी करना है अभी, मैंने कहा उसे। हमारे हॉस्टल में एक स्विमिंग पूल था। उसने कहा चल नहाते है। भाई बहुत ठंड है और रात के 10 बज रहे है, मैंने बोला उसे पर वो नहीं माना। ठीक है फिर चल चलते है। मतलब रात के 10 बजे मस्त ठंड में मैं और वो नीचे स्विमिंग पूल में नहाने चले गए। मैं वो एहसास नहीं भूल सकता। करीब आधे घंटे तक हम स्विमिंग करते है। हाँ, ऐसी बहुत सी बातें है जो मैंने लिखी नहीं है अभी, अगर लिखने बैठा तो ये ब्लॉग बहुत ही बड़ा हो जाएगा और शायद बोरिंग भी। तो मैं कुछ videos भी शेयर करूंगा इस ब्लॉग में, आप चाहे तो देख सकते है।


Hostel mates

Hoatel mates


Hostel entry point

Common room

Yummy

Traveler

Rafting

khana zindgi hai

Russian vodka gifted by friend

The soup was so tasty

The stranger

group of nomads

chaai zindgi hai

Hostel

Common room


अगले दिन भी भी मैं वही था, खूब सारी मस्ती की, नए दोस्त बनाए और पागलपनतियाँ भी की। अगले दिन मेरे जाने का वाट हो चुका था, मेरे रूम में जो रशियन था उससे मेरी दोस्ती हो चुकी थी। जाते जाते उसने मुझे एक रशियन वोड्का गिफ्ट किया और मैंने उसे अपना एक कुर्ता। ऋषिकेश मुझे हमेशा एक नया एहसास देता है। अगर आप नहीं गए है तो एक बार जरूर जाना, अच्छा लगेगा।  

Links

Rafting

https://www.youtube.com/watch?v=H8ut9imouw4&t=19s


Haridwar

https://www.youtube.com/watch?v=xgAFtBNWQ9I&t=14s