Wednesday, February 27, 2019

Nationalism on Social media: The Side Effects...!


मैं आजकल जहाँ भी जाता हूँ, भारत-पाकिस्तान की बातें ही हो रही होती है। जितने भी लोग हो, सब अपनी रणनीति बनाने में लगे रहते है। ऐसा कर देंगे तो वैसा हो जाएगा, भारत को अब पाकिस्तान के ऊपर परमाणु बम गिरा ही देना चाहिए, लाहौर पर कब्जा कर लेते है, वगैराह- वगैराह। मैं मानता हूँ की देशभक्ति कूट कूट कर भरी है, मैं मानता हूँ की सब बदला लेना चाहते है, मैं ये भी मानता हूँ की आज हम जिस नए भारत की बात कर रहे है, उसकी नीव सोशल मीडिया पर ही रखी गयी है। मैं नहीं समझ पा रहा था की आखिर क्या बोलू, क्योंकि इस गरम माहौल में लॉजिकल (मेरे लिए लॉजिकल, हो सकता है आपके लिए बेतुकी हो) बातें करना मुझे पिटवा भी सकता है। देखिये न, मैं ट्रैवल पर लिखने वाला बंदा आज आपसे राजनीति, देश, आर्मी और युद्ध की बातें करने जा रहा। वैसे मेरा कोई अनुभव नहीं है इन चीजों में तो अगर आपको सही न लगे तो अपनी राय आप मुझसे सांझा कर सकते है।

मैं मीडिया और कम्युनिकेशन का स्कॉलर होने के साथ साथ इसका प्राध्यापक भी हूँ। तो मैं आपको अपनी बात उसी तरीके से समझाने की कोशिश करूंगा। हम आज जिस दौर में जी रहे वो सोशल मीडिया का है और इसकी एक अलग पर बहुत विशाल दुनिया है। पिछले 7 साल में जिस तरीके से सोशल मीडिया ने अपना साम्राज्य स्थापित किया है वह देखने वाली बात है। हमारे लैपटाप से निकल कर अब इसका ठिकाना हमारा मोबाइल हो चला है। फुलवामा में हुये आतंकवादी हमले और उसमे शहीद हुये जवानों की खबर प्रकाश की गति से लोगो के मोबाइल स्क्रीन पर पहुंची और उससे भी ज्यादा तेजी लोगो ने उन खबरों को एक दूसरे को फॉरवर्ड करना शुरू कर दिया। देखते ही देखते आक्रोश की एक सुनामी दौड़ गयी देश में। न्यूज़ चैनल्स को अपना मसाला मिल चुका था और फिर  मीडिया ट्रायल का दौर शुरू हो गया। देशभक्ति की बातें सोशल मीडिया पर हैशटैग के साथ सफर करने लगी और भी उन पोस्ट पर लोगो के गुस्से वाले एमोजिस भी आने लगे। देखिये एक बात समझ लीजिये, किसी चाय की टपरी या ऑफिस की कुर्सी पर बैठ कर बोलना बहुत आसान है की अब तो युद्ध हो ही जाने दो, पर जरा उनसे भी तो पुछ के देखिये जिन्हे वाकई वहाँ बार्डर पर जाकर युद्ध लड़ना है। हम देशभक्ति से ओत-प्रोत होकर कोई भी मैसेज, विडियो या कंटेन्ट व्हाट्स अप्प और फ़ेसबूक पर शेयर किए किए चले जा रहे हैं। देशभक्ति की भावना लिए स्टेटस अपडेट कर रहे की इस बार हो जाने दो। अरे भाई क्या हो जाने दो, हलवा है क्या? युद्ध कोई पबजी का गेम है क्या जो मोबाइल पर ही लड़ लिया गया। हाँ ठीक है, पाकिस्तान के खिलाफ हमारा रेकॉर्ड काफी अच्छा रहा है पर इसका क्या मतलब है, लड़ ले युद्ध? कर ले अपनी आर्थिक स्थिति को पीछे? कर ले satisfy अपने nationalism वाले इमोशन को? जरा सोच के देखिये। हम युद्ध जीत भी जाये तो उसके परिणाम हमारे यहाँ भी तो लाखों परिवारों को भुगतने होंगे। हमारा क्या है,  हमें तो सिर्फ सोशल मीडिया पर युद्ध लड़ना है। कभी असली जिंदगी में किसी और के लिए लड़ा गया है क्या आपसे। सामने कुछ बुरा हो रहा हो तो आप तो निकल लेते हैं यह बोल कर की हमारा बुरा थोड़े न हो रहा। देखिये हुज़ूर, बात इतनी सी है, virtual वर्ल्ड में रहना और वहाँ चीख चीख कर यह कहना बहुत आसान है पर असलियत में मामला बहुत भयानक दिखता है।

आज सोशल मीडिया पर जीतने भी visuals आप देखते हैं, यकीन मानिए, उनमे से अधिकतर से छेड़छाड़ की गयी होती है। यह मैं नहीं कह रहा, डिजिटल क्राइम सेल की रिपोर्ट कहती है। बाकी मैंने भी कुछ रिसर्च कर रखे है सोशल मीडिया पर viral होती information। अगर आपको facts and figures की बात करनी हो तो बता दीजिएगा, मैं आपको वो सारे पपेर्स भेज दूंगा जो मैंने लिखे है और पब्लिश किए है। जिस तेज़ी से सोशल मीडिया हमारे इमोशन के साथ खिलवाड़ कर रहा है, वो दिन दूर नहीं जब हम सिर्फ और सिर्फ इसकी ही बातों पर विश्वास कर लिया करेंगे। मैं आपको ऐसे हज़ार examples दे सकता हूँ जहाँ सोशल मीडिया से फैली हुई खबरे बहुत दूर तक गयी और फिर बाद में उन खबरों को फ़ेक बता दिया गया। मीडिया में एक theory होती है जिसे magic bullet theory बोलते है। इसके मुताबिक अगर एक प्रकार की खबर को हम बार बार देखते रहेंगे तो वो खबर हमारे लिए सच हो जाती है और हम उस पर विश्वास करने लगते है। अब सोशल मीडिया के कारण magic bullet theory बहुत घातक तरीके से अपना काम कर रही है। घूम फिरकर हमारे पास एक ही तरह की खबरे आती रहती है और हम उन्ही खबरों पर विश्वास करते फिरते है। आपको नोटबंदी के दौरान 500 और 2000 के नोटों में चिप लगे होने की बात तो याद ही होगी न। जरा सोचिएगा की वो मैसेज इतनी फैली थी की न्यूज़ रूम ने भी चीख चीख कर उस खबर को सच बताया था।

आज भारत में जो युद्ध का माहौल बन रहा है, आप मानिए या न मानिए, इसमे सबसे बड़ा योगदान सोशल मीडिया का है जहाँ लोग बिना सोचे समझे चीख चीख कर देशभक्ति से ओतप्रोत होकर मैसेज फॉरवर्ड कर रहे हैं। देशभक्ति बुरी बात नहीं, ना ही इसे दिखाना गुनाह है, पर आपकी देशभक्ति को आधार बना कर कोई और गेम खेल जाएगा और आप देखते रह जाओगे। और आज सोशल मीडिया अपनी देशभक्ति दिखाने का सबसे सटीक प्लैटफ़ार्म बन चुका है।
जरा सोचिएगा, आपका एक मैसेज, विडियो क्या impact कर सकता है। भारत में media literacy बहुत ही कम है और अब सोशल मीडिया के आने के बाद visual literacy की भी जरूरत पड़ने लगी है। सोशल मीडिया पर अपने इमोशन पर थोड़ा सा कंट्रोल रखने की जरूरत है बस, बाकी सब ठीक है। ऐसी बहुत सी चीज़ें है जो मैं बोलना चाहता हूँ पर मैं ट्रैवल ब्लॉगर ही ठीक हूँ।

जय हिन्द, जय भारत।


12 comments:

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  2. Aapne jo b likha wo sb vastav m shi h m bhi aap se shmt hu
    Pr is time hme kya krna chahiye jo sbse shi ho
    fake messages ko to viral hone se m jha tk ho skta h khud or apne friends ko bol kr rokne ki kosis krta hu
    pr iske alawa or kya krke shi mayne deshbhakti kre.

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    1. Nationalism is an emotion and identity. These days we are facing lots of fake messages on social media specially what's app and facebook. Just dont believe on each and every messages very soon. Deshbhakti dikhaane ke liye jai hind jai bharat bolna hi ek acha tarika nahi hota, hum apne level par bahut si cheezein kar sakte hai. hum logo ko aise fake messages se bacha kar bhi apni deshbhakti dikha sakte hai.

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  3. Social media in immature or wrong hands could be a dangerous tool. Let's observe more self restraint and not get swayed emotionally by any exaggerated or distorted news.

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    1. Yes, we need to identify fake messages on social media. The flood of viral messages on various social media platforms will take us nowhere.

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  4. Social media in immature or wrong hands could be a dangerous tool. Let's observe more self restraint and not get swayed emotionally by any exaggerated or distorted news.

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  5. No doubt nowadays only this is happening on social media .

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  6. Yes sir...the fact is true...war se dono taraf nuksaan hi hai...n i can better understand this emotion...as my father was an army personnel and my brother is too an army officer...i spent my whole life in army campuses...whatever pak did use tolerate nhi kiya ja sakta..bt war iska solution nhi h....n yes u r ryt...those who r fighting war on social media will nvr understand this...every soldier's life is precious chae vo pak se ho ya india se...just coz of handful of terrorist we can't put life of our people in danger..and terrorist yhi to chahte hai...world me ashanti felana...n social media is driving us towards that....

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    1. we need to understand that all the visuals are not true. Let's spread the visual literacy.

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  7. सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि लड़ाई आतंकवाद से है किसी देश से नहीं। और सबसे पहले ज़रूरी है कि हम शांति बनाये रखें जंग कोई मज़ाक नहीं है। आज 40 शहीद जवानों पर इतना आक्रोश है ये कल जंग में 40हज़ार या लाख हो सकते हैं । दूसरे की हार की खुशी कितने परिवारों को चुकानी पड़ेगी कभी सोचा है? क्योंकि उनकी शोक सभा सिर्फ टेलीविज़न की खबर तक नहीं चलती साहिब ।

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  9. That's why Media Regulation is important. We don't deserve the Free Media Space.

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